Saturday, May 8, 2010

'मदर्स डे' : मां को पहचानने का पर्व


- भाग्येन्द्र पटेल

भारतीय संस्कृति में प्रतिदिन माता-पिता की सेवा करना प्राचीनतम परम्परा रही है। यह परम्परा अब 'फादर्स डे' तथा 'मदर्स डे' के रूप में वर्ष में महज एक दिन की प्रथा बनकर रह गई है। जाहिर है, ये और इस तरह के विभिन्न 'डे' मनाने का फैशन पश्चिमी देशों से प्रभावित है। बढ़ते बाजारवाद ने इन फैशन या कहें, औपचारिकताओं को फूलने-फलने का पूरा मैदान दिया है।
हमारे वेद-पुराण सदियों से हमें माता-पिता की महिमा समझाते आए हैं। रामायण के 'अयोध्याकाण्ड' में वाल्मीकि लिखते हैं कि अपनी शक्ति के अनुसार उत्तम खाघ पदार्थ देने, अच्छे बिछौने पर सुलाने, उबटन आदि लगाने, सदा प्रिय बोलने तथा पालन-पोषण करने और सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार द्वारा माता-पिता संतान के प्रति जो उपकार करते हैं, उसका बदला सरलता से नहीं चुकाया जा सकता। माता की महत्ता व गरिमा की बात करें, तो 'महाभारत' के अनुशासन पर्व में वेद व्यास कहते हैं- गौरव में उपाध्याय दस आचार्यों से बड़ा, पिता दस उपाध्यायों से बड़ा और माता दस पिताओं से बड़ी है। वहीं 'शांतिपर्व' में वे बताते हैं कि माता के तुल्य कोई छाया नहीं है, माता के तुल्य सहारा नहीं है। माता के सदृश कोई रक्षक नहीं है तथा माता के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं है। वस्तुत: माता की महिमा किसी के कथन-वर्णन की मोहताज नहीं है, वह अपने आप में ही महानता की सभी ऊंचाइयों से परे है। माता के विषय में किसी ने कहा है- पशुओं के लिए माता दुग्धपान तक माता रहती है। अधम व्यक्तियों के लिए विवाहर्पयंत तथा मध्यम व्यक्तियों को गृहकार्य देखने-भालने तक माता रहती है लेकिन उत्तम व्यक्तियों की माता जीवनर्पयंत तीर्थ के समान रहती है। अत: व्यक्ति मां की महत्ता किस रूप में और कहां तक करता है, उसी में व्यक्ति की अपनी पहचान भी निहित है। मां कभी अपने ऋण का बदला नहीं मांगती, परन्तु संतान का यह पहला पवित्र फर्ज है कि वह अपनी मां का ऋण उसके प्रति भावांजलि के रूप में अदा करे।
बच्चे के लिए तो हर दिन 'मां का दिन' होता है तथा वह स्वयं युवा या वृद्ध भी हो जाए, तो भी माता के लिए तो वह बच्चा ही रहता है। आधुनिक रफ्तार में व्यस्त व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं कि वह प्रतिदिन प्रत्यक्ष मातृ-वंदना कर सके, अपितु वर्ष में यदि एक दिन भी जननी के प्रति सम्मान में समर्पित किया जाता है, तो यह इसे अवश्य ही एक 'तर्पण' कहा जाना चाहिए।
'मदर्स डे' का इतिहास प्राचीन ग्रीक समय से प्रारंभ होता है। ग्रीस के लोग देवों की माता रहिया के सम्मान में उत्सव मनाते थे। शुरू में ईसाई लोग 'ईस्टर' के पश्चात के चौथे रविवार का दिन मदर मेरी के सम्मान के प्रतीक के रूप में मनाने लगे और उसे 'मदरिंग संडे' नाम दिया, परन्तु अमेरिका में रूढ़िवादी अंग्रेजों ने समय अभाव के कारण यह प्रथा बंद कर दी। 1872 में जुलिया वार्ड होवे ने शांति को समर्पित एक दिन माताओं के नाम आयोजित किया। यही 'मदर्स डे' का इतिहास बन गया। 1907 में फिलाडेल्फिया की एक शिक्षिका अन्ना जार्विस ने अपनी मां के मान में 'राष्ट्रीय मातृ दिवस' का आरंभ किया। इस हेतु उसने कई सौ वकीलों एवं व्यापारियों की सहायता मांगी। उसकी मां के सम्मान में एक चर्च में सर्वप्रथम 'मदर्स डे' मनाया गया। अन्ना की कड़ी मेहनत 1914 में रंग लाई। राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन ने मई मास के दूसरे रविवार को माताओं के सम्मान में राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित किया।
धीरे-धीरे 'मदर्स डे' अधिक लोकप्रिय हो गया और उपहार देने की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक बढ़ गई। यह देखकर अन्ना बहुत चिंतित हुई। उसका मानना था कि भावनाओं का समर्पण होना चाहिए, जबकि इस दिन के बहाने व्यापारी वृत्ति में मुनाफाखोरी का चलन हो रहा था। अन्ना की चिंता को ताक पर छोड़कर अमेरिका में मदर्स डे धूमधाम से मनाया जाने लगा। आगे चलकर विश्वभर में मई का दूसरा रविवार वर्ष का अत्यंत लोकप्रिय दिन बन गया। पश्चिमी देशों का सीधा एवं तत्काल प्रभाव हमारे देश पर पड़ता है। युग–युग से मां का महिमा गान करते आए इस देश में 'मदर्स डे' का आधुनिक संस्करण घुलमिल गया और बारह मास ममता की छांव में झूलने वाला भारतीय समाज भी एक दिन का 'मदर्स डे' मनाकर मातृ-ऋण चुकाने लगा।
बहरहाल, 'मदर्स डे' मनाते समय हमें मां के बृहद स्वरूप को भी देखना–समझना होगा। 'चाणक्य नीति' में पांच माताएं कही गई हैं, तो 'ब्रह्मवैवर्त्त पुराण' में मां के सोलह रूप बताए गए हैं– गुरूपत्नी, राजपत्नी, देवपत्नी, पुत्रवधू, माता की बहिन (मौसी), पिता की बहिन (बुआ), शिष्य पत्नी, भृत्य पत्नी, मामी, पिता की पत्नी (माता और विमाता), भाई की पत्नी, सास, बहिन, बेटी, गर्भ धारण करने वाली (जन्मदात्री) तथा इष्टदेवी– ये पुरूष की सोलह माताएं हैं। नारी के प्रति यही दृष्टिकोण यदि सभी जनमानस में घर कर जाए, तो महिलाओं की प्रताड़ना व अपराध की घटनाओं में भी कमी आएगी तथा समाज में नारी यानी माता का स्थान अधिक ऊंचा, अधिक गौरवपूर्ण बनेगा।

This Hindi article was published in the 'राष्ट्रीय सहारा' Hindi daily published from Delhi, Lucknow, Gorakhpur, Kanpur, Dehradun, Patna on 12-05-2007 on the eve of Mother's day. This has also apeared at my webpage mother

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